
श्रेयांसनाथ
Shreyansanatha
(11th Tirthankara in Jainism)
Summary
श्रेयांसनाथ: जैन धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर
श्रेयांसनाथ वर्तमान युग (अवसर्पिणी) के ग्यारहवें जैन तीर्थंकर थे। जैन धर्म के अनुसार, वे सिद्ध हुए - एक मुक्त आत्मा जिसने अपने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है।
श्रेयांसनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के राजा विष्णु और रानी विष्णा के घर हुआ था। यह घटना सिम्हापुरी में हुई थी, जो सारनाथ के पास स्थित है। उनका जन्म भारतीय कैलेंडर के फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को हुआ था।
अधिक जानकारी:
- वंश: इक्ष्वाकु
- माता-पिता: राजा विष्णु और रानी विष्णा
- जन्मस्थान: सिम्हापुरी, सारनाथ के पास
- जन्म तिथि: फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि
- धार्मिक महत्व: जैन धर्म में, श्रेयांसनाथ को एक सिद्ध आत्मा माना जाता है जो अपने सभी कर्मों से मुक्त हो चुका है।
विवरण:
श्रेयांसनाथ के जीवन के बारे में कई कथाएँ हैं। उनका जन्म एक राजा और रानी के घर हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने जन्म से ही संसार के मोह-माया से मुक्ति की इच्छा की। उन्होंने जैन धर्म के उच्चतम सिद्धांतों का पालन किया और अपने जीवनकाल में तपस्या और ज्ञान प्राप्ति की। अंत में, उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया और सिद्ध हुए।
धार्मिक प्रासंगिकता:
जैन धर्म में, श्रेयांसनाथ का बहुत महत्व है। उन्हें एक आदर्श व्यक्ति के रूप में माना जाता है जिसने अपने जीवन को मोक्ष की प्राप्ति के लिए समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाएँ और जीवन-चरित्र आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देते हैं।