
वासुपूज्य
Vasupujya
(12th Jain Tirthankara)
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वासुपूज्य: बारहवें तीर्थंकर
जैन धर्म में, वासुपूज्य आवश्यक (वर्तमान काल) के बारहवें तीर्थंकर हैं। जैन मान्यताओं के अनुसार, वे एक सिद्ध बन गए, जो एक मुक्त आत्मा है जिसने अपने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है।
जन्म और जीवन:
- वासुपूज्य का जन्म इक्ष्वाकू वंश में चंपापुरी (आज के बिहार) में राजा वासुपूज्य और रानी जया देवी के घर हुआ था।
- उनका जन्म भारतीय कैलेंडर के फाल्गुन कृष्ण महीने की चौदहवीं तारीख को हुआ था।
- वासुपूज्य ने कभी शादी नहीं की और ब्रह्मचारी रहे।
केवल ज्ञान और मोक्ष:
- वासुपूज्य ने तपस्या के एक महीने के भीतर ही केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया।
- उन्होंने चंपापुरी में आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की चौदहवीं तारीख को मोक्ष प्राप्त किया।
विशेष जानकारी:
- वासुपूज्य का जन्म एक राजा के घर हुआ था, लेकिन उन्होंने दुनियावी सुखों को त्याग दिया और ज्ञान और मोक्ष की तलाश की।
- उनके जीवन की कहानी हमें सिखाती है कि धन और वैभव से परे सच्चा सुख केवल आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्त करने में ही निहित है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:
- वासुपूज्य को जैन धर्म में बहुत आदर दिया जाता है।
- उनके जीवन की कहानी और शिक्षाओं को जैन ग्रंथों में विस्तार से वर्णित किया गया है।
- उनका प्रतीक चिह्न हाथी है, जो शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है।
Vasupujya is the twelfth tirthankara in Jainism of the avasarpini. According to Jain beliefs, he became a siddha, a liberated soul which has destroyed all of its karma. Vasupujya was born to King Vasupujya and Queen Jaya Devi at Champapuri in the Ikshvaku dynasty. His birth date was the fourteenth day of the Falgun Krishna month of the Indian calendar. He never married and remained a celibate. He attained Kevala Jnana within one month of Tapsya and Moksha at Champapuri, of Bihar in India on the fourteenth day of the bright half of the month of Ashadh.