
विमलनाथ
Vimalanatha
(13th Tirthankara in Jainism)
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वीमलनाथ: तेरहवाँ जैन तीर्थंकर
वीमलनाथ वर्तमान युग (अवसर्पिणी) के तेरहवें जैन तीर्थंकर थे। जैन धर्म के अनुसार, वे सिद्ध हुए, यानी उनका सभी कर्म नष्ट हो गया और वे मुक्त आत्मा बन गए।
वीमलनाथ का जन्म इक्ष्वाकू वंश के राजा क्रतावर्मा और रानी श्यामदेवी के घर कम्पिल्य में हुआ था। उनका जन्म भारतीय कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को हुआ था।
विस्तार से:
- तीर्थंकर: जैन धर्म में तीर्थंकर वे होते हैं जिन्होंने अपने कर्मों को नष्ट करके मोक्ष प्राप्त किया है और दूसरों को भी मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं।
- अवसर्पिणी: यह जैन धर्म में समय चक्र का एक अवरोही चरण है, जिसमें धर्म का क्षय होता है और लोगों के कर्म बढ़ते हैं।
- सिद्ध: जैन धर्म में सिद्ध एक मुक्त आत्मा है जिसने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है और अब उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता।
- कम्पिल्य: यह प्राचीन भारत में एक महत्वपूर्ण नगर था, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में स्थित है।
- इक्ष्वाकू वंश: यह भारत के सबसे प्राचीन राजवंशों में से एक है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका मूल भगवान राम से जुड़ा है।
वीमलनाथ की महत्वपूर्ण विशेषताएँ:
- वीमलनाथ को उनके अत्यधिक तप और ज्ञान के लिए जाना जाता है।
- वे दयालु और करुणावान थे और हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते थे।
- वे सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और स्नेह रखते थे और सभी जीवों के कल्याण की कामना करते थे।
वीमलनाथ का जन्म और जीवन जैन धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सभी जैन भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उन्हें जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
Vimalanatha was the thirteenth Jain Tirthankara of the present age (Avasarpini). According to Jain beliefs, he became a Siddha, a liberated soul which has destroyed all of its karma. Vimalanatha was born to King Kratavarma and Queen Shyamadevi at Kampilya of the Ikshvaku dynasty. His birth date was the third day of the Magh Sukla month of the Indian calendar.