
मुनिसुव्रत
Munisuvrata
(20th Tirthankara of Jainism, in current cycle of Jain cosmology)
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मुनीसुव्रत नाथ: जैन धर्म के बीसवें तीर्थंकर
जैन धर्म में, मुनीसुव्रत नाथ (मुनिसुव्रतनथ) वर्तमान अर्धकाल (अवसर्पिणी) के बीसवें तीर्थंकर थे। वे एक सिद्ध थे, अर्थात एक मुक्त आत्मा जिसने सभी कर्मों का नाश कर दिया था। जैन संस्करण के रामायण की घटनाएं मुनीसुव्रत के समय पर स्थित हैं।
मुनीसुव्रत नाथ का जीवन:
- मुनीसुव्रत ने 30,000 से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहे।
- उनका जन्म राजा सिंधु के घर हुआ था, जो कि आज के गुजरात में स्थित है।
- उनकी माता का नाम रानी सिंहला था।
- उन्हें "मुनी" नाम दिया गया था क्योंकि उन्होंने बचपन से ही तपस्या और ज्ञान में रुचि दिखाई थी।
- मुनीसुव्रत ने तपस्या करके कई वर्षों तक दुनिया से अलग रहकर जीवन बिताया।
- अंततः उन्होंने पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया और तीर्थंकर बन गए।
मुनीसुव्रत का धर्म:
- मुनीसुव्रत ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे पांच महाव्रतों का प्रचार किया।
- उन्होंने अपने शिष्यों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए कर्मों से मुक्ति और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
मुनीसुव्रत के मुख्य शिष्य:
- मुनीसुव्रत के मुख्य शिष्य ऋषि मल्लि स्वामी थे।
- उन्होंने मुनीसुव्रत के उपदेशों का प्रचार किया और उनके धर्म को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुनीसुव्रत और रामायण:
- जैन संस्करण के रामायण में मुनीसुव्रत का महत्वपूर्ण स्थान है।
- यह माना जाता है कि रामायण की घटनाएं उनके समय में हुई थीं।
- जैन रामायण में राम और सीता के जीवन की अलग व्याख्या है।
मुनीसुव्रत का महत्व:
- मुनीसुव्रत जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर हैं।
- उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
- वे अहिंसा और मोक्ष के मार्ग के प्रतीक हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जैन धर्म में मुनीसुव्रत के जीवन और उपदेशों के बारे में कई कथाएं और विवरण हैं। इस जानकारी के अलावा, आप जैन धर्म की ग्रंथों और पुस्तकों में मुनीसुव्रत के बारे में और अधिक जान सकते हैं।
Munisuvrata or Munisuvratanatha was the twentieth Tirthankara of the present half time cycle (avasarpini) in Jain cosmology. He became a siddha, a liberated soul which has destroyed all of his karma. Events of the Jaina version of Ramayana are placed at the time of Munisuvrata. Munisuvrata lived for over 30,000 years. His chief apostle (gaṇadhara) was sage Malli Svāmi.