
बौद्ध परलोक विद्या
Buddhist eschatology
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Summary
बौद्ध धर्म में दुनिया का अंत
यह लेख बौद्ध धर्म में दुनिया के अंत के बारे में मान्यताओं को समझाता है, खासकर जैसा कि यह चीन में विकसित हुआ था।
बौद्ध धर्म और चीनी मान्यताओं का मेल
बौद्ध धर्म में दुनिया के अंत के बारे में विचारधारा, आधुनिक बौद्ध अभ्यास और विश्वास के कई पहलुओं की तरह, चीन में विकसित हुई। बौद्ध ब्रह्माण्ड संबंधी समझ और ताओवादी धर्म के अंतिम समय के विचारों के मिश्रण ने, भविष्यवाणियों और प्रलय के बारे में मान्यताओं का एक जटिल संग्रह तैयार किया।
हालाँकि ये मान्यताएं पूरी तरह से रूढ़िवादी बौद्ध धर्म का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन ये चीनी बौद्ध परंपराओं का एक महत्वपूर्ण संग्रह बनाते हैं जो मठवासी व्यवस्था और शाही चीन की स्थानीय मान्यताओं के बीच की खाई को पाटते हैं।
'अप्रामाणिक' ग्रंथों का महत्व
हालांकि चीनी बौद्ध धर्म में दुनिया के अंत के बारे में वर्णन करने वाले लेखों का मुख्य स्रोत तथाकथित "अप्रामाणिक" ग्रंथ हैं, ये वास्तव में बौद्ध धर्म के अध्ययन में जानकारी का एक अमूल्य स्रोत हैं। ये ग्रंथ उन मान्यताओं और प्रथाओं को दर्शाते हैं जो मठों के बाहर आम लोगों के बीच प्रचलित थीं।
बौद्ध धर्म के प्रसार में 'अप्रामाणिक' ग्रंथों की भूमिका
ये दुनिया के अंत से जुड़े बौद्ध समूह 402 ईस्वी से चीन में दिखाई देने लगे और सुई से लेकर सांग राजवंश तक संख्या और जटिलता में वृद्धि हुई। यहीं पर श्वेत कमल सोसायटी और अमिदा बौद्ध पादरी जैसे कई आम और धार्मिक समूह (आम लोगों और पादरियों के) उभरे और दुनिया के अंत से जुड़े धर्मग्रंथों का प्रचार करने लगे।
बौद्ध धर्म में दुनिया के अंत के दो प्रमुख पहलू
बौद्ध दुनिया के अंत के दो प्रमुख बिंदु हैं:
मैत्रेय का आना: मैत्रेय, भविष्य के बुद्ध हैं जो मानव जाति को ज्ञान प्रदान करेंगे और एक नया स्वर्ण युग स्थापित करेंगे।
सात सूर्यों का उपदेश: यह एक प्रलयकारी भविष्यवाणी है जो बताती है कि कैसे सात सूर्य धीरे-धीरे पृथ्वी को झुलसा देंगे, जिससे दुनिया का विनाश होगा।
सारांश
चीन में विकसित बौद्ध दुनिया के अंत के बारे में मान्यताएं बौद्ध और ताओवादी विचारों का एक अनोखा मिश्रण हैं। हालांकि इन्हें हमेशा रूढ़िवादी बौद्ध धर्म का हिस्सा नहीं माना जाता है, ये मान्यताएं चीनी बौद्ध इतिहास और संस्कृति को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं।