Atreya

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आत्रेय ऋषि: आयुर्वेद के जनक (Atreya Rishi: The Father of Ayurveda)

आत्रेय ऋषि, जिन्हें आत्रेय पुनर्वसु भी कहा जाता है, महान हिंदू ऋषि अत्रि के वंशज थे। अत्रि ऋषि की उपलब्धियों का वर्णन पुराणों में मिलता है। आत्रेय ऋषि आयुर्वेद के प्रकांड विद्वान थे और उनकी शिक्षाओं पर आधारित आयुर्वेद का एक प्राचीन सम्प्रदाय स्थापित हुआ था।

प्राचीन काल के विद्वान:

कुछ इतिहासकार आत्रेय का काल छठी शताब्दी ईसा पूर्व मानते हैं और उनका मानना है कि वे गांधार के राजा नाग्नजित के राजवैद्य थे। बौद्ध ग्रंथ 'मूलसर्वस्तिवाद-विनयवस्तु' में उन्हें बुद्ध के निजी चिकित्सक जीवक के गुरु के रूप में वर्णित किया गया है और उन्हें गांधार के तक्षशिला से जोड़ा गया है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों का आधार:

'चरक संहिता' और 'भेल संहिता' के सबसे प्राचीन भाग आत्रेय की शिक्षाओं का संग्रह हैं। 'भेल संहिता' आत्रेय और उनके शिष्य भेल के बीच संवाद के रूप में है। 'चरक संहिता' की मूल सामग्री का श्रेय आत्रेय को दिया जाता है, जिसे बाद में अग्निवेश और चरक ने संहिताबद्ध और संपादित किया था। सुरेन्द्रनाथ दासगुप्त के अनुसार, आत्रेय-चरक संप्रदाय के प्राचीन आयुर्वेद की जड़ें अथर्ववेद की अब लुप्त हो चुकी 'चरणवैद्य' शाखा में हैं।

आयुर्वेद में योगदान:

आत्रेय ऋषि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। उनकी शिक्षाओं ने न केवल चिकित्सा पद्धति को आकार दिया बल्कि स्वास्थ्य, रोग और उपचार के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया।


Atreya (आत्रेय) Rishi, or Atreya Punarvasu, was a descendant of Atri, one of the great Hindu sages (rishis) whose accomplishments are detailed in the Puranas. Sage Atreya was a renowned scholar of Ayurveda, and a school of early Ayurveda was founded based on his teachings.



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