
बौद्ध धर्म में शरण
Refuge in Buddhism
(Initiation ceremony in Buddhism)
Summary
बौद्ध धर्म में शरणागति: सरल भाषा में विवरण (हिंदी)
बौद्ध धर्म में, शरणागति एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रथा है जो दिन की शुरुआत या किसी धार्मिक सत्र के आरंभ में की जाती है। इसमें प्रायः एक विशेष प्रार्थना या मंत्र का जाप शामिल होता है।
प्रारंभिक बौद्ध धर्म के समय से ही, थेरवाद और महायान संप्रदायों के अधिकांश अनुयायी त्रिरत्न (तीन रत्न, तीन शरण या त्रिशरण) में ही शरण लेते हैं। ये तीन रत्न हैं: बुद्ध, धम्म, और संघ।
हालांकि, वज्रयान संप्रदाय त्रिरत्न के साथ-साथ तीन मूलों को भी शरणागति सूत्र में सम्मिलित करता है।
शरणागति का अर्थ:
शरणागति का अर्थ है त्रिरत्न को अपने जीवन का केंद्र बनाकर जीने का दृढ़ निश्चय करना। यह एक छोटे से सूत्र के द्वारा किया जाता है जिसमें व्यक्ति बुद्ध, धम्म और संघ को अपनी शरण स्वीकार करता है।
प्राचीन बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, शरण लेना बुद्ध के मार्ग पर चलने का दृढ़ संकल्प है, न कि अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति।
शरणागति बौद्ध धर्म के सभी प्रमुख संप्रदायों में प्रचलित है।
आधुनिक युग में पश्चिमी देशों में शरणागति:
1880 में, हेनरी स्टील ऑलकॉट और हेलेना ब्लावात्स्की पहले ज्ञात पश्चिमी व्यक्ति थे जिन्होंने त्रिशरण और पंचशील ग्रहण किए। यह वह पारंपरिक समारोह है जिसके द्वारा व्यक्ति औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म स्वीकार करता है।
विस्तार से:
- बुद्ध: बुद्ध का अर्थ है "जागृत" या "प्रबुद्ध"। बौद्ध धर्म में बुद्ध वह व्यक्ति होता है जिसने दुःखों से मुक्ति का मार्ग खोज लिया है और दूसरों को भी उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
- धम्म: धम्म का अर्थ है "सत्य" या "धर्म"। यह बुद्ध की शिक्षाओं का संग्रह है जो दुःखों से मुक्ति का मार्ग बताता है।
- संघ: संघ का अर्थ है "समुदाय"। यह उन सभी लोगों का समुदाय है जो बुद्ध के मार्ग पर चलते हैं, चाहे वे गृहस्थ हों या संन्यासी।
शरणागति एक व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है जो बौद्ध धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।