
सिख खालसा आर्मी
Sikh Khalsa Army
(Military unit)
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सिख खालसा फौज: एक शक्तिशाली सैन्य बल की कहानी
सिख खालसा फौज, जिसे खालसा फौज या सिख फौज भी कहा जाता है, सिख साम्राज्य की सैन्य शक्ति थी। इसकी जड़ें गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित खालसा में हैं। बाद में, महाराजा रणजीत सिंह ने इसे फ्रांसीसी-ब्रिटिश सिद्धांतों पर आधारित आधुनिक सैन्य बल में बदल दिया।
फौज तीन भागों में विभाजित थी:
- फौज-ए-खास (एलीट फोर्स): यह फौज का सबसे चुनिंदा और कुशल हिस्सा था। इनमें सबसे अच्छे सैनिक होते थे, जो युद्ध में अग्रणी भूमिका निभाते थे।
- फौज-ए-ऐन (नियमित बल): यह फौज का मुख्य बल था, जिसमें अनुभवी सैनिक शामिल थे। यह नियमित रूप से प्रशिक्षित होती थी और युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
- फौज-ए-बे क़वायद (अनियमित बल): यह फौज का सबसे अनौपचारिक हिस्सा था, जिसमें स्थानीय लोग और स्वयंसेवक शामिल थे। यह फौज युद्ध के समय सहायता करने के लिए आती थी।
महाराजा रणजीत सिंह और उनके यूरोपीय अधिकारियों ने अपने सैनिकों को बेहतर बनाने के लिए अथक प्रयास किए। इस प्रयास से सिख खालसा फौज एशिया की एक शक्तिशाली सैन्य शक्ति बन गई।
रणजीत सिंह ने अपनी सेना के प्रशिक्षण और संगठन में कई बदलाव और सुधार किए:
- ज़िम्मेदारियों का पुनर्गठन: रणजीत सिंह ने प्रत्येक सैनिक की ज़िम्मेदारी स्पष्ट की और उनके प्रदर्शन के मानक निर्धारित किए।
- सैनिकों की तैनाती, युद्ध रणनीति और निशानेबाजी में दक्षता: रणजीत सिंह ने युद्ध में सैनिकों की तैनाती, युद्ध रणनीति और निशानेबाजी में सुधार किया।
- अश्वारोही और छापामार युद्ध के बजाय स्थिर गोलाबारी पर ध्यान केंद्रित: रणजीत सिंह ने अश्वारोही और छापामार युद्ध पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, स्थिर गोलाबारी पर जोर दिया।
- युद्ध के उपकरणों और तरीकों में सुधार: रणजीत सिंह ने युद्ध के उपकरणों और तरीकों में भी सुधार किया।
- पैदल सेना और तोपखाने को मजबूत करना: रणजीत सिंह ने अपनी सेना में पैदल सेना और तोपखाने को मजबूत किया।
- खजाने से सैनिकों को वेतन देना: रणजीत सिंह ने मुगल शासन के विपरीत, अपनी सेना को स्थानीय सामंतों के बजाय, खजाने से वेतन दिया।
रणजीत सिंह की सैन्य व्यवस्था ने पुरानी और नई दोनों विचारधाराओं का मेल मिलाकर एक शक्तिशाली सैन्य बल बनाया। इसने सिख साम्राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की और इसे एशिया में एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में स्थापित किया।
The Sikh Khalsa Army, also known as Khalsaji or simply Sikh Army, was the military force of the Sikh Empire. With its roots in the Khalsa founded by Guru Gobind Singh, the army was later modernised on Franco-British principles by Maharaja Ranjit Singh. It was divided in three wings: the Fauj-i-Khas (elites), Fauj-i-Ain and Fauj-i-Be Qawaid (irregulars). Due to the lifelong efforts of the Maharaja and his European officers, it gradually became a prominent fighting force of Asia. Ranjit Singh changed and improved the training and organisation of his army. He reorganized responsibility and set performance standards in logistical efficiency in troop deployment, manoeuvre, and marksmanship. He reformed the staffing to emphasize steady fire over cavalry and guerrilla warfare, improved the equipment and methods of war. The military system of Ranjit Singh combined the best of both old and new ideas. He strengthened the infantry and the artillery. He paid the members of the standing army from treasury, instead of the Mughal method of paying an army with local feudal levies.