
तपा गच्चा
Tapa Gaccha
(Subsect of Jainism)
Summary
तापा गच्छ - श्वेतांबर जैन धर्म का सबसे बड़ा संघ
तापा गच्छ श्वेतांबर जैन धर्म के सबसे बड़े और सबसे पुराने संघों में से एक है। 'गच्छ' शब्द एक जैन संघ के लिए प्रयोग किया जाता है, जो धर्म के एक विशिष्ट शिक्षक या विचारधारा का पालन करते हैं।
तापा गच्छ की स्थापना 12वीं शताब्दी में आचार्य श्री विजयसेन सूरी ने की थी। इस गच्छ में समाचार के प्रसार के लिए एक अद्वितीय पद्धति का प्रयोग किया जाता है, जिसे श्रुतज्ञान कहा जाता है। श्रुतज्ञान में संघ के सदस्यों को समय समय पर धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण बातों को याद करने और उनका प्रसार करने का अभ्यास कराया जाता है। यह अभ्यास उनके ज्ञान और विचारों के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
तापा गच्छ के अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं:
- अहिंसा का सख्त पालन: तापा गच्छ के सदस्य अहिंसा का सख्त पालन करते हैं और किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर रहते हैं। वे किसी भी जीव को नुकसान पहुँचाने से बचते हैं और अपने जीवन में अहिंसा को प्रथम सिद्धांत मानते हैं।
- ज्ञान का प्रसार: तापा गच्छ के सदस्य ज्ञान के प्रसार में विश्वास करते हैं और धर्म के संबंध में अपना ज्ञान दूसरों के साथ साझा करते हैं। वे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू करते हैं।
- सामाजिक सुधार: तापा गच्छ के सदस्य सामाजिक सुधार में विश्वास करते हैं और समाज के निम्न वर्ग के लोगों की मदद करते हैं। वे शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आज भी तापा गच्छ श्वेतांबर जैन धर्म का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली संघ है। इस गच्छ के सदस्य विश्व के विभिन्न देशों में रहते हैं और जैन धर्म के सिद्धांतों को प्रसारित करते हैं।